उन्होंने कहा कि इस फिल्म में “बाल यौन शोषण के विरुद्ध उस लम्बे संघर्ष को नहीं दर्शाया गया है जिसका सामना सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें को परमधर्मपीठीय विश्वास एवं धर्मसिद्धान्त परिषद के अध्यक्ष रहते हुए तथा बाद में काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष रहते हुए करना पड़ा था। इसमें इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया है कि प्रायः कलीसियाई संस्थाओं को इन घटनाओं का पता नहीं होता और जब पता चलता है तो वे इन अपराधों का सामना आवश्यक संकल्प के साथ नहीं कर पाते हैं।” पत्रकार स्काराफिया ने लिखाः “सभी राक्षस पादरियों के परिधान नहीं पहने होते तथा यह ज़रूरी नहीं कि बाल यौन शोषण ब्रहम्चर्य के व्रत की उपज है।”
उन्होंने लिखा, “यह तथ्य कि एक ऑस्कर समारोह से इस समस्या पर ध्यान गया तथा सन्त पापा फ्रांसिस इस अभिशाप को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं एक सकारात्मक चिन्ह हैः कलीसिया में अभी भी लोगों का विश्वास है, अभी भी उस सन्त पापा में विश्वास बरकरार है जो अपने पूर्वाधिकारी का नेक काम जारी रखते हुए निर्दोष बच्चों की सुरक्षा हेतु उपयुक्त कदम उठा रहे हैं।”
“लोस्सरवातोरे रोमानो में प्रकाशित एक अन्य लेख में अवलोकनकर्त्ता एमिलियो रनज़ातो ने लिखाः “स्पॉटलाईट फिल्म काथलिक विरोधी नहीं है क्योंकि इसमें कहीं भी काथलिक धर्म का ज़िक्र नहीं है।
उन्होंने लिखाः “बेशक यह फिल्म एक साहसिक फिल्म है जिसमें उन अपराधों का खण्डन किया गया है जिनकी बेहिचक निन्दा की जानी चाहिये और इस फिल्म में यह काम गम्भीर एवं विश्वसनीय जाँचपड़ताल के बाद किया गया है।”
(Juliet Genevive Christopher)