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सच्ची सहानुभूति द्वारा करुणा का साक्ष्य

In Church on March 3, 2016 at 3:53 pm

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 3 मार्च 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 3 मार्च को वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में, जीवन रक्षा के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी की आम सभा में भाग ले रहे 150 सदस्यों से मुलाकात की।जीवन रक्षा के लिए परमधर्मपीठीय अकादमी की आम सभा में, समकालीन संस्कृति को एक महत्वपूर्ण संदेश देने वाले जीवन के नैतिकता आधार पर विशेष अध्ययन किया जा रहा है।

संत पापा ने उन्हें सम्बोधित कर कहा, ″बाईबिल हमें यह बतलाता है कि अच्छे इरादें तथा बुरी भावनाएँ बाहर से प्रवेश नहीं करतीं किन्तु हृदय में ही उत्पन्न होती हैं। बाईबल के अनुसार हृदय शरीर का एक ऐसा अंग है जिसमें न केवल पीड़ा है किन्तु आध्यात्मिकता, तर्क और इच्छा के भाग मौजूद हैं उसमें निर्णय लेने, सोचने तथा कार्य करने की क्षमता भी है। यह पवित्र आत्मा द्वारा संचालित होकर विवेकपूर्ण चुनाव कर सकता है। अच्छे कार्य को बढ़ावा देता किन्तु आत्मा तथा जीवन का बहिष्कार कर बुराई को भी आश्रय दे सकता है। संक्षेप में, हृदय मानवता का संश्लेषण है जिसे ईश्वर ने अपने हाथों से गढ़ा है। (उत्प.2.7) मानव हृदय में ही ईश्वर अपनी प्रज्ञा को उड़लते हैं।

संत पापा ने आज की परिस्थिति पर गौर करते हुए कहा कि कई संस्कृतियों में उस निर्देश पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता कि वास्तव में, व्यक्ति ईश्वर की दिव्य प्रज्ञा की निशानी है। इस प्रकार मानव स्वभाव को भौतिक वस्तु मात्र तक सीमित कर दिया जाता है। फिर भी, मानव ईश्वर की दृष्टि में विशिष्ट तथा मूल्यवान है अतः उसे स्वतंत्रता की हवा एवं जीवन जल की सच्चाई प्रदान की जानी तथा स्वार्थ के जहर से बचाये जाने की आवश्यकता है। फलतः मानवीय पृष्ठभूमि पर कई सद्गुणों का विकास हो सकता है।

संत पापा ने कहा कि आज कई संस्थाएँ हैं जो जीवन की सेवा में संलग्न हैं खोज तथा मदद के द्वारा वे न केवल अच्छे कार्यों को प्रोत्साहन दे रह हैं किन्तु अच्छाई के लिए उत्साह को। आज वैज्ञानिक ज्ञान तथा तकनीकी साधन मानव जीवन को सहायता प्रदान कर सकते हैं जहाँ वह कमजोर है किन्तु बहुधा उसमें मानवता का अभाव होता है। अच्छे कार्य नैतिकता के ज्ञान का सही इस्तेमाल नहीं किन्तु कमजोर व्यक्ति के प्रति सच्ची दिलचस्पी है।

अतः संत पापा ने अकादमी को प्रोत्साहन दिया कि वे अपने प्रशिक्षण में वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान के साथ साथ मानवता का भी ज्ञान दें ताकि विद्यार्थी मानसिक और भावनात्मक रूप से परिपक्व हो सकें जिसकी आवश्यकता उन्हें प्रतिष्ठा के आधार पर सभी परिस्थितियों में मानव जीवन की सेवा हेतु आवश्यक है। जो लोग जीवन की रक्षा तथा उसके विकास हेतु समर्पित हैं वे इसकी सुन्दरता प्रदर्शित करें। वास्तव में कलीसिया धर्मातरण से नहीं बढ़ती किन्तु आकर्षण द्वारा।

संत पापा ने कहा कि सच्ची सहानुभूति एवं अन्य सदगुणों को व्यक्त करने के द्वारा ही वे जीवन के पिता की करुणा का साक्ष्य दे सकते हैं।


(Usha Tirkey)

ईश्वर की करुणा प्राप्त करने हेतु हम अपने पापों को स्वीकार करें

In Church on March 3, 2016 at 3:52 pm

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 3 मार्च 2016 (वीआर सेदोक): ″यदि हृदय खुला है तभी हम ईश्वर की दया को स्वीकार कर सकते हैं।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग प्रवचन में कही।संत पापा ने बृहस्पतिवार 3 मार्च को अपने ख्रीस्तयाग प्रवचन में ईश प्रजा की अविश्वसनीयता पर प्रकाश डाला तथा कहा कि अपने को पापी स्वीकार करने के द्वारा ही हम अपने पर विजय प्राप्त कर सकते एवं मन-परिवर्तन के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं।

संत पापा ने कहा कि विश्वासनीयता के इस समझौते में, हम ईश्वर की निष्ठा तथा ईश प्रजा की बेवफाई को पाते हैं।

नबी येरेमियह के ग्रंथ से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा, ″ईश्वर सदा निष्ठावान हैं क्योंकि वे अपने आप को इन्कार नहीं कर सकते।″ जबकि लोग उनके वचनों पर ध्यान नहीं देते। अतः नबी येरेमियाह बतलाते हैं कि ईश्वर ने अपनी प्रजा को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कई उपाय अपनाये किन्तु ईशप्रजा हठधर्मी बनी रही।

संत पापा ने कहा कि यदि हृदय कठोर और बंद हो तो ईश्वर की दया उसमें प्रवेश नहीं कर सकती है।

उन्होंने विश्वासियों को चेतावनी दी कि यही अविश्वसनीयता आज हम में भी है क्योंकि हमारा हृदय भी कठोर और बंद है।

उन्होंने कहा, ″यह ईश्वर की वाणी को अंदर प्रवेश करने नहीं देता जबकि वे एक प्रेमी पिता के रूप में हमारे हृदय को अपनी दया तथा प्रेम से भरने के लिए, उसे खोलने का आग्रह करते हैं।

संत पापा ने प्रस्तावित सुसमाचार पाठ पर संहिता के विद्वानों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया जिनका हृदय कठोर था। उन्होंने कहा, ″संहिता के पंडित जिन्हें धर्म का पूरा ज्ञान था, वे अपने में बंद थे। दूसरी ओर, जनता ने अपना हृदय खोला तथा येसु में विश्वास किया।

संत पापा ने विश्वासियों को क्षमा मांगने एवं दूसरों का न्याय नहीं करने का परामर्श दिया।

उन्होंने कहा, ″संहिता के पंडितों का मनोभाव बंद था। उन्होंने येसु के संदेश को नहीं समझने के कारण हमेशा व्याख्या की मांग की। उन्होंने स्वर्ग के चिन्ह की भी मांग की।″ संत पापा ने कहा कि यह निष्ठा में असफलता की कहानी है, बंद हृदय की कहानी जो ईश्वर की करुणा को प्रवेश करने नहीं देती और जिन्होंने क्षमाशीलता के शब्द को भूला दिया है। संत पापा ने कहा कि ईश्वर के प्रति क्षमा मांगने की प्रक्रिया अपने आपको पापी स्वीकार करने से शुरू होती है।

उन्होंने ईश्वर से निष्ठा की कृपा के लिए प्रार्थना करने की सलाह दी।


(Usha Tirkey)

करीतास इंडिया द्वारा सरकार की किसान समर्थक नीति का स्वागत

In Church on March 3, 2016 at 3:51 pm

नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, 3 मार्च 2016 (ऊकान): काथलिक करीतास इंडिया ने संघीय सरकार द्वारा किसानों के कल्याण को प्राथमिकता दिये जाने का स्वागत किया है तथा कहा है कि सरकार की इस योजना के सही कार्यान्वयन से किसान समुदाय को अवश्य लाभ होगा।भारत सरकार ने 2016 से 2017 के लिए अपनी वार्षिक बजट में कृषि तथा कृषक समुदाय के विकास हेतु 350 अरब रूपये आवंटित की है।

वित मंत्री अरून जेटली ने 29 फरवरी को संसद को बतलाया कि सरकार करीब 1.22 हेक्टर जमीन में सिंचाई की सुविधा प्रदान करना चाहती है। उन्होंने यह भी बतलाया कि बजट में 2 लाख हेक्टर जमीन में तीन सालों के लिए जैविक खेती की योजना भी बनायी है।

करीतास इंडिया के निर्देशक फा. फ्रेडरिक डी. सूजा ने ऊका समाचार से कहा, ″यह सरकार की ओर से एक अच्छी समझ है क्योंकि कृषि ही है जो लोगों को खाद्य, कारख़ानों को सच्चा माल तथा ग़रीबों के लिए जीविका का साधन उपलब्ध कराती है।″

उन्होंने कहा कि सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है क्योंकि लम्बे समय से किसानों को ध्यान नहीं दिया जा रहा था। किसान समुदाय के प्रति सरकार का ध्यान ऐसे समय में हुआ है जब भारत के किसान सूखे, बाढ़ तथा बेमौसम बारिश का सामना कर रहे हैं।

ऊका समाचार के अनुसार करीब 6000 किसानों ने आर्थिक समस्या और फसल में हानि के कारण आत्म हत्या कर ली है।

विदित हो की भारत की कुल आबादी करीब 1.3 अरब है जिसके दो तिहाई परिवार कृषि पर निर्भर हैं।

फा. डीसूजा ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में कृषि का उत्थान इस समय की प्रमुख आवश्यकता है। झांसी धर्मप्रांत के समाज सेवा केंद्र के निर्देशक फा. वी जे थॉमस ने कहा कि यदि सरकार अपनी योजना को सही तरीके से कार्यान्वित करेगी तो किसान समुदाय को बजट से अवश्य लाभ होगा।


(Usha Tirkey)

सीबीसीआई की 32 वीं आम सभा बैंगलोर में शुरू

In Church on March 3, 2016 at 3:51 pm

बैंगलोर, बृहस्पतिवार, 3 मार्च 2016 (ऊकान): भारत की काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की 32 वीं धार्मिक आम सभा, बैंगलोर के संत जोन मेडिकल के आहाते में 2 से 9 मार्च को आयोजित किया गया है।विदित हो कि भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन दो सालों में एक आम सभा का आयोजन करती है जिसमें भारत की कलीसिया के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श किया जाता है, खासकर, कलीसिया की चुनौतियों पर गौर करते हुए उसके समाधान निकालने का प्रयास किया जाता है ताकि वह समाज की सेवा में अधिक प्रभावशाली बन सके।

ऊका समाचार के अनुसार देश भर से करीब 180 धर्माध्यक्ष इस सभा में भाग ले रहे हैं। सभा की विषयवस्तु है, ″समकालीन चुनौतियों पर भारत की कलीसिया का प्रत्युत्तर।″ सभा में विभिन्न कार्यों के लिए उत्तरदायी 20 पुरोहितों को भी शामिल किया गया है। इसमें अन्य विशिष्ट व्यक्ति तथा लोकधर्मी एवं अन्य धर्मों के सदस्य भी उपस्थित हैं।

काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के प्रवक्ता फा. ज्ञानप्रकाश तोपनो ने कहा कि आठ दिनों की इस सभा में विभिन्न कार्यालयों एवं राष्ट्रीय केंद्रों के रिपोर्टों का आकलन भी किया जाएगा। इस सभा  में भारत की काथलिक धर्मसमाजिक समिति (सी. आर. आई) तथा भारतीय काथलिक समिति (सी. सी. आई) के विचारों का भी स्वागत किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि आम सभा की शुरूआत 2 मार्च को ख्रीस्तयाग द्वारा हुई जिसका अनुष्ठान भारत के प्रेरितिक राजदूत महाधर्माध्यक्ष सालवातोरे पेन्नाकेयो ने किया।

उद्घाटन के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस एवं भारत के राष्ट्रपति के संदेश पढ़े गये तथा सीबीसीआई के अध्यक्ष कार्डिनल बेसलियोस क्लेमिस ने सभा की अध्यक्षता की। वॉशिंगटन के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल डोन्लड वेर्ल इस सभा के मुख्य अतिथि हैं।


(Usha Tirkey)

चक्रवात में ध्वस्त स्कूलों के बच्चों की देखभाल में कोलम्बियन मिशनरी

In Church on March 3, 2016 at 3:50 pm

सुवा, बृहस्पतिवार, 3 मार्च 2016 (फिदेस): काथलिक मिशनरी सोसाईटी संत कोलम्बियन, विंस्टन चक्रवात से प्रभावित फिजी द्वीप समूह के लोगों की मदद कर रही है।20 फरवरी को आये चक्रवात के कारण द्वीप समूह के करीब 40 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं तथा 62,000 लोग अब भी आपातकालीन केन्द्रों में शरण दे रखी है।

फिदेस को भेजे गये रिर्पोट अनुसार संत कोलम्बियन की मिशनरी सोसाईटी को इस कार्य में अमरीका के काथलिक मिशन संगठन यू. एस. सी. एम. ए. का समर्थन प्राप्त है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चक्रवात पीड़ितों की मदद के लिए कई अन्य पहल भी लिए गये हैं जैसे 5 मार्च को सामुदायिक प्रार्थना सभा का आयोजन तथा वैश्विक जलवायु काथलिक आंदोलन द्वारा एकजुटता अभियान को प्रोत्साहन आदि।

उन्होंने बतलाया कि बा पल्ली में तीन स्कूलों में गम्भीर क्षति हुई है। शयन कक्ष गिर चुका है तथा बच्चे गिरजाघर में सो रहे हैं।

विदित हो कि फिजी द्वीप समूह में 325 किलो मीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आये समुद्री तूफान ने 300 द्वीप समूहों के घरों को ढाह दिया है तथा बिजली लाईनों को अस्त-व्यस्त कर दिया है। सरकार ने प्राकृतिक आपदा के कारण 30 दिनों की आपातकालीन स्थिति की घोषणा की है। संचार माध्यम धीरे-धीरे सामान्य स्थिति पर आ रहा है किन्तु राजधानी के बाहर कई घरों में अब भी बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पायी है।


(Usha Tirkey)

प्रेरक मोतीः सन्त कैथरीन ड्रैक्सल (1858-1955 ई.)

In Church on March 3, 2016 at 3:49 pm

वाटिकन सिटी, 03 मार्च सन् 2016

कैथरीन ड्रैक्सल का जन्म अमरीका के फिलडेलफिया में, सन् 1858 ई. में, एक धनवान परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही कैथरीन परोपकारी भावना से परिपूरित रही थी जिसके कारण पड़ोसी एवं ईश्वर के प्रति प्रेम में वे विकसित होती गई। अमरीकी समाज में अश्वेतों एवं मूल अमरीकी लोगों के विरुद्ध भेदभाव को वे सहन नहीं कर पाती थी तथा उनके कल्याण के लिये कुछ करने की अभिलाषा उनके मन में बनी रही थी।

अमरीकी समाज के तिरस्कृत अश्वेतों एवं अधिकार-विहीन अमरीकी जनजाति के लोगों की सहयता हेतु पहले तो उन्होंने आर्थिक मदद शुरु की। अपनी कमाई के सारे पैसे वे इन्हीं लोगों के कल्याण के लिये दान कर दिया करती थी किन्तु बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वह पर्याप्त नहीं था। दान करना ठीक था किन्तु समाज के पिछड़े वर्ग के प्रति सकारात्मक भावनाओं को प्रोत्साहन देना तथा उनके प्रति तत्कालीन अमरीकी समाज की मानसिकता को रचनात्मक रूप से परिवर्तित करना एक महान चुनौती थी। इस चुनौती का सामना करने के लिये कैथरीन ने पवित्र यूखारिस्तीय संस्कार को समर्पित एक धर्मसंघ की स्थापना की। इस धर्मसंघ के सदस्यों का मिशन पवित्र यूखारिस्त की भक्ति के साथ-साथ अश्वेतों एवं अमरीकी जनजातियों के उत्थान हेतु सेवा अर्पित करना था।

33 वर्ष की आयु से लेकर, सन् 1955 ई. में, अपनी मृत्यु तक, कैथरीन ने इसी मिशन के प्रति  अपना जीवन समर्पित रखा। अपने परिवार से दायभाग में मिले दो करोड़ डॉलर भी उन्होंने धर्मसंघ के मिशन के लिये खर्च कर दिये। सन् 1894 ई. में मदर कैथरीन ड्रैक्सल ने सान्ता फे तथा न्यू मेक्सिको में अमरीकी जानजातियों के लिये पहले मिशन स्कूलों की स्थापना की। इन दो स्कूलों के बाद नित्य-नये स्कूल खुलते रहे। मिस्सिप्पी नदी के पश्चिमी तट पर अमरीकी जनजातियों के लिये तथा अमरीका के दक्षिणी भाग में अश्वेतों के लिये नये स्कूलों की स्थापना की गई। इसी श्रंखला में, सन् 1915 ई. में, उन्होंने न्यू ऑरलीन्स में ज़ेवियर विश्वविद्यालय की नींव रखी।

सन् 1955 ई. में अमरीका के अश्वेतों एवं प्रताड़ितों की माता नाम से विख्यात, मदर कैथरीन ड्रैक्सल का निधन हो गया था। उनकी मृत्यु के समय सम्पूर्ण अमरीका के विभिन्न क्षेत्रों में 500 धर्मबहनें, 63 स्कूलों में, शिक्षा प्रदान करने का अनुपम कार्य कर रही थीं। मदर कैथरीन ड्रैक्सल  के विश्वास प्रेरित जीवन एवं अमरीका के प्रताड़ितों के प्रति उनकी निःस्वार्थ सेवा के लिये, सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने, 20 नवम्बर, सन् 1988 ई. को उन्हें धन्य तथा पहली अक्टूबर, सन् 2000 को सन्त घोषित कर, कलीसिया में, वेदी का सम्मान प्रदान किया था। सन्त कैथरीन ड्रैक्सल  का पर्व 03 मार्च को मनाया जाता है।

चिन्तनः “सद्गुण की स्मृति बनी रहती है। ईश्वर और मनुष्य, दोनों उसका सम्मान करते हैं। जब तक सद्गुण विद्यमान है, लोग उसका अनुसरण करते हैं। जब वह चला जाता है, तो लोग उसकी अभिलाषा करते हैं। परलोक में उसकी शोभा-यात्रा मनायी जाती है, जिसमें वह विजय का मुकुट पहन कर चलता है; क्योंकि उसे अविनाशी पुरस्कारों की प्रतियोगिता में सफलता मिली है” (प्रज्ञा ग्रन्थ 04: 1-2)।  


(Juliet Genevive Christopher)