Vatican Radio HIndi

Archive for August 11th, 2016|Daily archive page

अमरीका में करुणा की असाधारण जयन्ती

In Church on August 11, 2016 at 2:54 pm

कोलोम्बिया, बृहस्पतिवार, 11 अगस्त 2016 (वीआर सेदोक): अमरीका महाद्वीप में करुणा की असाधारण जयन्ती अगले 27 से 30 अगस्त को मनायी जायेगी।

लातीनी अमरीका के लिए गठित परमधर्मपीठीय आयोग के अध्यक्ष- मार्क ओले ने इस बात की घोषणा की। 10 अगस्त को प्रकाशित पत्र में उन्होंने कहा, ″करुणा की असाधारण जयन्ती पवित्र आत्मा द्वारा संत पापा फ्राँसिस को दी गयी एक मजबूत एवं समय के अनुसार प्रेरणा का फल है। सभी ख्रीस्तीय, ख्रीस्तीय समुदाय तथा उनके चरवाहे ईश्वर की करुणा पर चिंतन करने और उसका अनुभव करने के लिए बुलाये गये हैं जो निर्धारित समय पर येसु द्वारा प्रकट हुई है तथा पवित्र आत्मा की कृपा द्वारा फैलायी गयी है। इस प्रकार संत पापा हमें व्यक्तिगत रूप से तथा परिवार, समाज और देश में सुसमाचार को जीने हेतु प्रेरित कर रहे हैं। यही कारण है कि 27 से 30 अगस्त तक बोगोटा में समस्त महाद्वीप की ओर से करुणा की असाधारण जयन्ती मनायी जायेगी।″

उन्होंने कहा कि उत्तरी, मध्य एवं दक्षिणी अमरीका तथा करेबियन से 400 से अधिक लोग ईश्वर की करुणा की कृपा को मनाने हेतु जमा होंगे।

लातीनी अमरीका में असाधारण करुणा की जयन्ती का आयोजन, लातीनी अमरीका के लिए गठित परमधर्मपीठीय आयोग, लातीनी अमरीका के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन, संयुक्त राज्य अमरीका एवं कनाडा के धर्माध्यक्षों के संयुक्त पहल द्वारा किया गया है। जयन्ती बोगोटा में मनाया जायेगा।

लातीनी अमरीका में करुणा की असाधारण जयन्ती मनाने का उद्देश्य है समस्त महाद्वीप में कलीसिया की एकता को प्रकट करना जो करुणा के सुसमाचार को प्रतिबिम्बित करने के लिए बुलायी गयी है। जयन्ती के दौरान अनुभव एवं जयन्ती के परिणाम का संक्षिप्त मूल्यांकन किया जायेगा।

जानकारी अनुसार 15 कार्डिनल एवं 120 धर्माध्यक्षों ने जयन्ती समारोह में भाग लेने हेतु नामांकन करा लिया है। संत पापा फ्राँसिस वीडियो संदेश द्वारा इस जयन्ती समारोह का उद्घाटन करेंगे। आशा की जा रही है कि ईश्वर की करुणा की कृपा का एहसास करने हेतु यह एक महान अवसर होगा।


(Usha Tirkey)

सीरिया यूनिसेफ द्वारा अलेप्पो के बच्चों और परिवारों के लिए पानी की व्यवस्था

In Church on August 11, 2016 at 2:53 pm

यूनिसेफ, बृहस्पतिवार, 11 अगस्त 2016 (वीआर सेदोक): संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपात निधि (यूनिसेफ) की सीरिया शाखा ने अलेप्पो में दुःखद स्थिति से निपटने के लिए कुल 13 लाख बच्चों एवं परिवारों के लिए जलापूर्ति करने की योजना बनायी है।

प्राप्त जानकारी अनुसार यूनिसेफ, अलेप्पो में उन 2 लाख लोगों को जल उपलब्ध करा रही है जिनके घरों में पानी की सुविधा नहीं है। 31 जुलाई को हमले और संघर्ष की स्थिति में वृद्धि के बाद, यूनिसेफ द्वारा शहर के पश्चिमी हिस्से में ट्रक द्वारा आपातकालीन जल वितरण में वृद्धि हुई है। आईसी आरआई एवं एसएआरसी के कार्यकर्ताओं के सहयोग से यूनिसेफ प्रतिदिन आपात जल की आपूर्ति कर रही है, जिसमें हाल के दिनों में विस्थापन के शिकार लोग भी लाभान्वित हो रहे हैं। सुरक्षित पेयजल का वितरण 70 कुँओं एवं क्वेक नदी द्वारा किया जा रहा है जिसका निर्माण यूनिसेफ ने किया है।

अलेप्पो के पूर्वी इलाकों में जहाँ 3 लाख आबादी है और जिनमें एक तिहाई बच्चे हैं कुँआ के जल पर निर्भर हैं जो संभावतः मल सामग्री से दूषित है और पीने योग्य नहीं है। यूनिसेफ तथा इसके साझेदार अलेप्पो के पूर्वी इलाकों में पानी की पाइपलाइनों और अन्य बुनियादी सुविधाओं हेतु आवश्यक मरम्मत की कोशिश कर रही है ताकि वहाँ पानी इकट्ठा किया जा सके एवं आवश्यकता पड़ने पर लोगों को आपातकालीन जल वितरित किया जा सके।

अपने विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा यूनिसेफ पूरे सीरिया के बच्चों एवं परिवारों को जल तथा स्वच्छता प्रदान कर रही है मुख्य रूप पेयजल एवं स्वच्छता कीट प्रदान करने के द्वारा तथा बुनियादी ढांचे प्रणालियों का पुनर्वास एवं पानी पैंपिंग स्टेशनों के लिए कीटाणुनाशक की आपूर्ति द्वारा।


(Usha Tirkey)

दलितों के खिलाफ भेदभाव के कारण भारतीय कलीसिया ने मनाया “काला दिवस”

In Church on August 11, 2016 at 2:51 pm

″ख्रीस्तीय समुदाय किसी विशेष एहसान की नहीं किन्तु देश के संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय, समानता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी की मांग करती है। दूसरे दलित लोगों की तरह ही ख्रीस्तीय दलितों को भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा आधिकारिक रूप से अनुसूचित जाति में नहीं आने के कारण उनपर हो रहे हिंसक आक्रमणों से भी उनकी रक्षा नहीं की जाती है।″ यह बात मुम्बई के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल ऑस्वल्ड ग्रेसियस ने 10 अगस्त को, ख्रीस्तीय दलितों के साथ भेदभाव के कारण ″काला दिवस″ घोषित कर, किये गये एक प्रदर्शन के दौरान कही।

10 अगस्त 1950 को भारत के राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान धारा 341 (1) के तहत ″संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950″ पर हस्ताक्षर किया था जिसके अनुच्छेद 3 अनुसार ‘कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू धर्म के अलावा दूसरा धर्म मानता हो, अनुसूचित जाति के अंतर्गत नहीं समझा जाएगा।

सन् 1956 और 1990 में किये गये संशोधन अनुसार बौद्ध एवं सिक्ख को अनुसूचित जाति में रखा गया जबकि ख्रीस्तीयों एवं मुसलमानों को छोड़ दिया गया। इस कानून के कारण हिन्दू दलितों को आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक लाभ के साथ नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है जबकि ख्रीस्तीय एवं मुसलमान दलितों को इसके लिए लम्बे समय से संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि यह संविधान में समानता, धर्मनिरपेक्षता तथा धर्म मानने की स्वतंत्रता के खिलाफ है।

भारत के ख्रीस्तीय समुदाय में दो तिहाई संख्या दलितों की है जो देश की कुल आबादी के 2.3 प्रतिशत हैं।

66वें वर्षगाँठ पर भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने काथलिकों से अपील की थी कि पीड़ित ख्रीस्तीयों के प्रति एकात्मता प्रदर्शित करने हेतु इस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया जाए तथा अपने धर्मप्रांतों में सभा बुलाई जाए, प्रदर्शन, भूख हड़ताल तथा मोमबती जूलूस आदि का आयोजन किया जाए। साथ ही संचार माध्यमों द्वारा उन घटनाओं को प्रकाश में लाया जाए।

कार्डिनल ने कहा कि दलित ईसाइयों के मानव विकास संकेतक दिखलाते हैं कि उन्हें सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है जो उन्हें समान संसाधनों एवं अवसरों को प्राप्त करने वंचित कर देता है अतः सरकार को चाहिए कि वह दलित ख्रीस्तीयों के प्रति भेदभाव को समाप्त करने हेतु कदम उठाये।

मुम्बई के महाधर्माध्यक्ष ने इस बात पर भी गौर किया कि गिरजाघरों में भी दलितों के साथ जाति के नाम पर भेदभाव किया जाता है। कलीसिया हाल की एक घटना से आहत हो गयी थी जब एक दलित धर्माध्यक्ष पर हिंसक आक्रमण किया गया था।

 


(Usha Tirkey)

भारतीय आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा हेतु एकजुट होने का आह्वान

In Church on August 11, 2016 at 2:50 pm

नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, 11 अगस्त, 2016 (ऊकान): कलीसिया के धर्मगुरूओं ने भारत के आदिवासियों की एकता का आह्वान किया है ताकि वे एकजुट होकर सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु संघर्ष कर सकें।

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में, काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के आदिवासी विभाग के सचिव फा. स्तानिसलास तिरकी ने करीब 1,000 आदिवासियों को सम्बोधित कर कहा, ″भारत की आदिवासी जनता ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है किन्तु वर्तमान में यह आवश्यक है कि वे एक साथ आयें ताकि विस्थापन एवं शोषण के विरूद्ध संघर्ष कर सकें।″

आदिवासी समाज से आने वाले फादर स्तानिसलास ने कहा, ″हमारी समस्या एक समान है हम भेदभाव के शिकार होते हैं अतः जब तक हम एकजुट नहीं होंगे यह समस्या बनी रहेगी।″ सरकारी आँकड़ा अनुसार भारत में करीब 104 मीलियन आदिवासी लोग हैं जो करीब 600 से दलों में विभाजित हैं।

कई आदिवासी समुदाय केवल अपनी जाति और उपजाति तक ही सीमित हैं जबकि कई जगहों में आपसी प्रतिद्वंद्विता और प्रभुत्व के लिए हिंसा तक की घटनाएँ सुनने को मिलती हैं।

फा. तिर्की ने ऊका समाचार से कहा कि सामाजिक, आर्थिक एवं विकास संबंधी अधिकारों को सुदृढ़ करने के लिए सभी आदिवासियों को एक साथ आना होगा। उन्हें अपने अधिकारों के लिए हिंसा किये बिना संघर्ष करना तथा लोकतंत्र की नीति को अपनाना होगा।

भारतीय सामाजिक संस्थान में आदिवासी अध्ययन विभाग के प्रमुख जेस्विट फा. रंजित तिग्गा ने कहा कि भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए कई प्रावधान हैं लेकिन उन्हें लागू करने में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी है। उन्होंने कहा कि कई नीतियाँ आदिवासियों के खिलाफ हैं खासकर, जल, जंगल और जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के खिलाफ।

झारखंड की दयामनी बारला ने कहा कि आदिवासियों को अपने समाज की सेवा करने एवं एकता में बढ़ने के लिए अपनी पृथक्कृत मानसिकता से बाहर आना होगा। पश्चिम बंगाल की अभिनेत्री रोमा एक्का ने कहा कि जो लोग शिक्षा देते हैं उन्हें अधिकारों के बारे सिखाना चाहिए, जब हम समानता की बात करते हैं तो सभी लोगों को एक साथ लेकर चलना होगा।

कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के युवाओं के सहयोग से जेस्विट पुरोहितों द्वारा संचालित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट ने किया था।


(Usha Tirkey)

गौ रक्षकों के खिलाफ मोदी से न केवल भाषण किन्तु कर्रवाई की मांग

In Church on August 11, 2016 at 2:48 pm

नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, 11 अगस्त 2016 (ऊकान): ख्रीस्तीय समुदाय ने भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की गौ रक्षा दल के विरूद्ध दी गयी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह राजनीति से प्रेरित होकर की गयी है तथा यह बहुत कम है एवं बहुत देरी से की गयी है।

विगत कुछ महीनों से समाचार पत्रों में हिन्दू चरमपंथियों द्वारा दलित, ख्रीस्तीयों एवं मुसलमानों पर कई क्रूर आक्रमणों की घटनाएँ सामने आ रही थी। हिंसा को गौ हत्या एवं गायों के साथ दुर्व्यवहार के आरोपों के प्रत्युत्तर में अंजाम दिया जा रहा है।

समाचार पत्रों में इस तरह की कई घटनाओं के प्रकाशित होने के बावजूद सरकार मूकदर्शक बनी हुई थी तथा हिंसा को अंजाम देने वालों पर कोई कार्रवाई करने से इन्कार कर रही थी।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के महासचिव धर्माध्यक्ष थेओदोर मसकरेहास ने कहा, ″हम खुश हैं कि प्रधान मंत्री ने अंततः कुछ बोला है तथा बहुत दृढ़ता के साथ बोला है किन्तु दलित एवं अल्पसंख्य दल और अधिक खुश होंगे जब सचमुच काररवाई की जायेगी।″

उनका कहना है कि अल्पसंख्यकों पर गाय की रक्षा हेतु हिंसक आक्रमण करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी उम्मीद जतायी है कि सरकार हिंसा का समर्थन करने वालों का भी विरोध करे।

दिल्ली और फिर दक्षिणी राज्य हैदराबाद में बोलते हुए मोदी ने कहा था “कुछ लोग गौरक्षक के नाम पर दुकान खोलकर बैठ गए हैं. मुझे इस पर बहुत ग़ुस्सा आता है।” मोदी ने आगे कहा कि रात में गोरख धंधे में लगे कुछ असामाजिक तत्व दिन में गौ रक्षक बन जाते हैं और इनमें से 80 फ़ीसदी फ़र्ज़ी है।

भारत में भारत में चर्चों की राष्ट्रीय परिषद की सदस्य सामूएल जाया कुमार का मानना है कि मोदी ने राजनीति से प्रेरित होकर ऐसा कहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव अगले साल होने वाला है।

दलित ख्रीस्तीय नेता मेरी जोन ने कहा कि गोरक्षकों के हिंसक कार्यों के खिलाफ मोदी के शब्द बहुत कम और बहुत देरी से आये हैं पर यदि वे अपनी बातों के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें अभी ही कार्रवाई करनी चाहिए। भारत की 1.2 अरब आबादी में से 20 प्रतिशत लोग दलित समुदाय से आते हैं।


(Usha Tirkey)